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300 साल के अद्भुत संत का नाम कैसे पड़ा सचल विश्‍वनाथ, रामकृष्‍ण परमहंस ने क्यों दिया था नया नाम

वाराणसी को काशी नगरी भी बोला जाता है। जहां भगवान शिव की प्राचीन मंदिर है, यहां दूर- दराज से लोग पूजा – अर्चना करने आते है। वही वाराणसी सबसे प्राचीन नगरों में से एक है। यह भगवान शिव जी के त्रिशूल पर स्थित है, यह भी मान्‍यता है कि, जो भी काशी नगरी में अपना प्राण त्‍यागता है। वह जन्‍म और मृत्‍यु के बंधन से आज़ाद हो जाता है। काशी नगरी पराचीन कल से साध- संत और योगियों की नगरी रही है। यहां कई प्राचीन मंदिर है। जहां की मंदिरों पर कई साधु- संत और योगी नजर आते है। ऐसे ही एक थे तैलंग स्‍वामी इनकी आयु तीन सौ साल के आसपास बताई जाती थी।

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काशी नगरी में ही ये करीब डेढ़ सौ वर्ष रहे है। इनके साथ कई चमत्‍कारिक स्टोरी भी संबंधित है। ये गंगा किनारे काफी देर तक आसन लगाकर साधना करते रहते थे। वहीं, अंग्रजों ने इन्‍हें कारावास में डालने का प्रयास किया था, लेकिन कोई इन्हे कारावास में डाल ना सका। इतना ही नहीं कई बार इनको जहर देने का भी प्रयास किया गया लेकिन इसमें भी असफल रहे। वही जब इनसे मुलाकात करने स्‍वामी रामकृष्‍ण परमहंस आए तो अभ‍िभूत हो गए। बाद में उन्‍होंने कहा कि, “यह तो साक्षात शंकर जी हैं, काशी के सचल भोलेनाथ”।

तैलंग स्वामी शिव जी की पूजा करते थे

तैलंग स्‍वामी के बारे में बताए तो, उनका जन्म का 27 नवंबर 1607 में आंध्रप्रदेश में हुआ था। इनका नाम शिवराम रखा गया। तैलंग स्वामी के पैरेंट्स महादेव की पूजा जेड पाठ करते थे। वही शिवराम शिव जी की पूजा करते थे। उन्‍होंने शादी विवाह भी नहीं किया था। जब यह 40 साल के थे तब इनके पैरेट्स का निधन हो गया। जिसके बाद उन्होंने अपनी मदर के कहने पर काली जी की उपासना स्टार्ट कर दी थी। शिवराम को अपनी मां से इतना स्नेह था कि मां के निधन के बाद वो श्‍मशान घाट में ही रहने लगे थे।

जहां उनका दर्शन भागीरथानंद सरस्‍वती से हुई जिन्‍होंने शिवराम को संन्‍यास की दीक्षा दी और नाम दिया स्‍वामी गणपत‍ि सरस्‍वती। जिसके बाद स्वामी गणपति भ्रमण करने लगे। वर्ष 1733 में यह प्रयागराज पहुंचे। इसके बाद 1737 में काशी पहुंचे और वही ये अपनी अंतिम सांस तक रहे।

तेलंग स्वामी को कारावास में डालने का अंग्रेज ने किया था प्रयास

वहीं काशी के लोग इन्हे तैलंग स्वामी बोलते थे। तैलंग स्‍वामी को देहबोध नहीं था। बच्‍चों के समान बिना कपड़े के यह काशी नगरी की गलियों में भ्रमण करते थे। ईश्वर के ध्‍यान में लीन रहते थे। अंग्रेज अधिकारियों को यह मंजूर नही था और इन्‍हें अश्‍लीलता के आरोप में कारावास में डाल दिया। लेकिन वो कारावास के बजाए छत पर दिखे। इन्‍हें फिर कोठरी में बंद किया गया तब वो बाहर दिखे। जिसके बाद पुलीस ने इन रिहा कर दिया।

तैलंग स्वामी अनेकों सिद्धियों के स्‍वामी थे। कई ऐसी कथाएं हैं कि, इन्‍हें किसी मरे व्‍यक्ति के रोते हुए परिवार को देखकर लाश को छुआ तो जिंदा हो गया। ऐसी ही इनसे लेकर अनेकों कहानियां है। इनमें लोकनाथ ब्रह्मचारी, बेनीमाधव ब्रह्मचारी, रामकृष्‍ण परमहंस, विवेकानंद, साधक बापखेपा जैसी अन्य आध्‍यात्मिक विभूतियां प्रमुख हैं।

बताया जाता है कि, रामकृष्‍ण परमहंस ने जब तैलंग स्‍वामी को देखा तो कहा कि, मैंने देखा कि साक्षात ब्रह्मांड के स्‍वामी इनके माध्‍यम से जनता के सामने प्रकट हुए हैं। वह ज्ञान की उच्चे अवस्‍था पर हैं। उनमें देह का बोध बचा ही नहीं है। तैलंग स्‍वामी सही मायनों में परमहंस हैं। उनकी उपस्थित‍ि मात्र से वाराणसी प्रकाशित हो रही है। “यह वाराणसी के सचल महादेव हैं।” बता दे कि, 26 दिसंबर साल 1887 को तैलंग स्वामी ने महासमाधी ली थी।

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